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Lokdeo Nehru: Dinkar Granthmala

Lokdeo Nehru: Dinkar Granthmala

Ramdhari Singh Dinkar
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रामधारी सिंह 'दिनकर' की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुस्तक है 'लोकदेव नेहरू'। पंडित नेहरू के राजनीतिक और अन्तरंग जीवन के कई अनछुए पहलुओं को जिस निकटता से प्रस्तुत करती है यह पुस्तक, वह केवल दिनकर जी के ही वश की बात लगती है। दिनकर जी ने 'लोकदेव' शब्द विनोबा जी से लिया था जिसे उन्होंने नेहरू जी की श्रद्धांजलि के अवसर पर व्यक्त किया था। दिनकर जी का मानना भी है कि 'पंडित जी, सचमुच ही, भारतीय जनता के देवता थे।' जैसे परमहंस रामकृष्णदेव की कथा चलाए बिना स्वामी विवेकानन्द का प्रसंग पूरा नहीं होता, वैसे ही गांधी जी की कथा चलाए बिना नेहरू जी का प्रसंग अधूरा छूट जाता है। इसीलिए इस पुस्तक में एक लम्बे विवरण में यह समझाने की कोशिश गई है कि इन दो महापुरुषों के प्र सम्बन्ध कैसे थे और गांधी जी के दर्पण में नेहरू जी का रूप कैसा दिखाई देता है। गांधी जी और नेहरू जी के प्रसंग में स्तालिन की चर्चा, वैसे तो बिलकुल बेतुकी-सी लगती है, लेकिन नेहरू जी के जीवन-काल में छिपे-छिपे यह कानाफूसी भी चलती थी कि उनके भीतर तानाशाही की भी थोड़ी-बहुत प्रवृत्ति है। अत: इस पुस्तक में पाठक नेहरू जी के प्रति दिनकर जी के आलोचनात्मक आकलन से भी अवगत होंगे। वस्तुत: दिनकर जी के शब्दों में कहें तो 'यह पुस्तक पंडित जी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि है।' पंडितजी से मैंने कभी भी कोई चीज अपने लिए नहीं माँगी सिवाय इसके कि 'संस्कृति के चार अध्याय' की भूमिका लिखने को मैंने उन्हें लाचार किया था ।और पंडितजी ने भी मुझे मंत्रित्व आदि का कभी कोई लोभ नहीं दिखाया । मेरे कानों में अनेक सूत्रों से जो खबरें बराबर आती रहीं, उनका निचोड़ यह था कि सन 1953 ई. से ही उनकी इच्छा थी कि मैं मंत्री बना दिया जाऊं । चूँकि मैंने उनके किसी भी दोस्त के सामने कभी मुझेहाँह नहीं खोला, इसलिए सूची में मेरा नाम पंडितजी खुद रखते थे और खुद ही अंत में उसे काट डालते थे ।
Έτος:
1965
Εκδότης:
Lokbharti Prakashan
Γλώσσα:
hindi
Σελίδες:
166
ISBN 10:
9389243114
ISBN 13:
9789389243116
Σειρές:
Dinkar Granthmala
Αρχείο:
PDF, 36.57 MB
IPFS:
CID , CID Blake2b
hindi, 1965
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